रविवार, 24 नवंबर 2019

अल्पना


भान नहीं कुछ,
ज्ञात नहीं पथ,
मुंह चिढ़ा रहा
दोराहा ।

खेल खेलना
आया ना ।
कोई दांव ना 
आया रास ।
जो भी खेला
पाई मात ।

समझ ना आया
ग़लत हुआ क्या ?
ध्येय समक्ष था
राह क्यों भूला ?

लक्ष्य जो चूका,
भ्रमित मन हुआ ।
धुंध छंटे ना ।
मार्ग सूझे ना ।

इस मोड़ पे ठिठका,
मैं बाट जोहता,
तुमसे विनती करता ..

पार्थसारथी कृष्ण सखा
इस बेर अर्जुन को क्या
ना समझाओगे गीता ?
रथ को ना दोगे दिशा ?

तुम्हारी ही रचना
मैं हूँ ना ?
तो फिर आओ ना
पूरी करो ना,
मेरे जीवन की 
अल्पना ।

शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

कृष्ण का सुदामा

खयालों में रंग हों तो
उन्हें दरारों में भर कर
रुपहली कलाकृति 
बनाया जा सकता है ।

बेरंग चटकी ज़मीन को
कृष्ण भाव के गाढ़े
रंगों का महीन दुशाला
ओढ़ाया जा सकता है ।

जो उपेक्षित कोने को
अपनी कलात्मकता की
सांझी सेवा से सजा दे
वही कृष्ण का सुदामा है ।


कलाकृति : श्री कर्ण सिंह पति 

बुधवार, 13 नवंबर 2019

लगन


लगन की 
अनगिनत 
बातियों को 
गूंथ कर
सूरज बना, 
जगत में जो
उजाला लाया ।

जो उजाला
दिन ढले
बेशुमार तारों
और चंद्रमा
को समेटता,
हज़ारों दियों की
टिमटिमाती
लौ बन कर
जगमगाया ।

लगन लग जाए
एक दफ़ा,
तो एक दिया भी
काफ़ी है,
अपने हिस्से की
रोशनी,
जुटाने के लिए ।


बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

आए हैं सिया राम




आओ
एक नए दिन का
सहर्ष स्वागत करें ।

आए हैं सिया राम
लंका जीत कर ।
अभिनन्दन करें ।

हम भी अपने-अपने
युद्ध जीतने का
संकल्प करें ।

यथासंभव
प्रसन्न रहने का
प्रयत्न करें ।

दिये की लौ से
तिमिर का
तिलक करें ।

नन्हे दियों सी
छोटी खुशियों का
आनंद संजोएं ।

मर्मभूमि पर हृदय की
सियाराम लिख
वंदन करें ।

आओ जीवन की
विसंगतियों को
त्यौहार में बदल दें ।

आओ आशा के
टिमटिमाते दियों की
झिलमिलाती रोशनी में
अल्पना बन संवर जाएं ।


सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

डायरी के ख़ाली पन्ने


बड़ा शौक है मुझे 
डायरियां इकट्ठी करने का..    
उन लोगों का है कहना 
जो जानते हैं मुझे।  

देखा है उन्होंने 
मुझे डायरियां खरीदते हुए,
डायरियों के इश्क में
मजनू होते हुए ..
खूबसूरत डायरी देखी नहीं
कि लट्टू हो गए !
आव देखा ना ताव
घर ले आए
सीने से लगा के !
बस यूँ समझ लीजिए
एक निकाह ही नहीं पढ़ा !
हम भी वर्ना ...
आदमी थे काम के !

कभी तशरीफ़ लाइए !
नाचीज़ के गरीबखाने पे !
शेल्फ़ में करीने से सजी
दिखेंगी डायरियां !
बहुत कुछ जिनमें
बाकी है लिखना। 
ख़ाली पन्ने नहीं ये 
दामन हैं उम्मीद का। 
किसी दिन देखना, 
मुझे आ जाएगा लिखना
अपने मन का। 

बस ये मत पूछियेगा
इन डायरियों का होगा क्या ?
कुछ ना कुछ तो होगा ज़रूर !
ये नाज़नीं ठहरीं मेरा गुरूर !

और क्या कहिये इनका सुरूर !
मरमरी काग़ज़ की खुशबू
कर देती है दीवाना !
अपने-आप से बेगाना !

जब डायरी का कोरा पन्ना
खुलता है आँखों के सामने,
जी में उमड़ने लगता है
जज़्बात का सैलाब !
और बाहों में समाने लगता है
संभावनाओं का असीम आकाश। 

आज नहीं तो कल बोल उठेंगे शब्द, 
और भर देंगे डायरी के सारे ख़ाली पन्ने। 
 

बुधवार, 9 अक्तूबर 2019

अंततः जीतता है सत्य ही


असत्य तो हारता ही है अंततः 
बेशक़ हम समझ ही ना पाएं, 
भेद न कर पाएं हार-जीत में।  

चूक जाए विश्लेषण हमारा। 
भ्रमित कर दे अन्वेषण हमारा।

याद करो जब घटती है दुर्घटना 
अथवा होता है कुछ बहुत बुरा 
आदमी अनभिज्ञ बन कर है पूछता 
मेरे ही साथ आखिर ऐसा क्यों हुआ ?
मैंने क्या किया था जो यह दंड मिला ?

उसे याद नहीं आता अपना किया। 
अपने ही कर्मों का मिलता है सिला। 
सोचो तो अवश्य मिल जाएगा सिरा।

हर दृष्टांत रामलीला जैसा 
स्पष्ट कथानक नहीं होता। 
साफ़-साफ़ दिखाई नहीं देता 
हमेशा न्याय विधाता का 
दो और दो चार के सामान। 
पर कचोटता है अनुचित जो किया। 
आजीवन प्रेत बन करता है पीछा। 

इसलिए विश्वास डिगने मत देना। 
संशय को सेंध मत मारने देना। 
जो करना चाहिए तुम वही करना। 

दूसरों के किये का हिसाब तुम्हें नहीं देना। 
तुमसे पूछा जायेगा कि तुमने क्या किया ? 

सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

नट का नाच



हँसी आ गई
देख कर
बिजली के तार पर
नट की तरह
सूरज दादा को
संतुलन बनाते हुए !

इंसान की
क्या बिसात !
बड़े-बड़ों को
झंझटों में फंस कर
झूलते तारों में
उलझ कर
डगमगाते देखा ।

घटनाक्रम और
कालचक्र के पेंच ने
दुर्दांत टेढ़ों को
सीधा कर दिया ।
समय की
डुगडुगी बजा कर
चुटकी बजाते
सिखा दिया
नट का नाच ।

जब विकल्प ना हो
और गिरना ना हो
तो आ ही जाता है
इकहरी रस्सी पर
नट की तरह
दम साध कर
संभल कर चलना ।