रविवार, 2 दिसंबर 2018

पीले फूल





बित्ते भर के
पीले फूल !

खिड़की से झांकते
सिर हिला-हिला के
अपने पास बुलाते,
इतने अच्छे लगे...
कमबख़्त !
उठ कर जाना पड़ा !

देखा आपस में
बतिया रहे थे,
राम जाने क्या !

एक बार लगा ये
धूप के छौने हैं ।
फिर लगा हरे
आँचल पर पीले
फूल कढ़े हैं ।
या वसंत ने पीले
कर्ण फूल पहने हैं ।

वाह ! क्या कहने हैं !
ये फूल मन के गहने हैं !

खुशी का नेग हैं !
भोला-सा शगुन हैं ।

इन पर न्यौछावर
दुनिया के व्यवहार ..
कम्बख़्त ये  ..  
बित्ते भर के
पीले फूल !




शनिवार, 1 दिसंबर 2018

अभिनंदन




आज का दिन
हुआ बेहतरीन !

गए हफ़्ते
जो बीज बोए थे,
उस मिट्टी में
अंकुर फूटे हैं
नन्हे-नन्हे ।

बड़ी लगन से
सींचे थे
जो कुम्हलाते पौधे,
उनकी डाली पे
कोमल कोपल हरी-हरी
अभी देखी ।

एक कली है खिली हुई,
एक खिलने को है ।

धूप खिली-खिली
फूलों को हँसा रही ।
पत्तियां ताज़ी-ताज़ी
हाथ हिलाती,
अभिवादन करतीं
धूप का दे-दे ताली ।

ख़ुशगवार है मौसम
कम से कम इस पल ।

जिन दिनों
स्थगित हो जाता है जीवन ।
अपने बोये बीज का
अंकुरित होना,
अपने सींचे
पौधों पर फूल खिलना,
मुरझाए मन में
बो देता है मुस्कान ।
खिल उठता है अंतर्मन ।
फिर गुनगुनाने लगता है जीवन ।

जीवन का सदा ही
अभिनंदन ।

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

रंग



कोरी मटकी देख कर
मन करता है
खड़िया-गेरू से
बेल-बूटे बना दूँ ।

कोरा दुपट्टा देख कर
मन करता है
बांधनी से
लहरिया रंग डालूँ ।

खाली दीवार देख कर
मन करता है
रोली के
थापे लगा दूँ ।

कोरा कागज़ देख कर
मन करता है
वर्णमाला से
वंदनवार बना दूँ ।

उजड़ी क्यारी में फूल खिला दूँ ।
वीराने में बस्ती बसा दूं ।
चौखट पर दिया जला दूं ।
आंगन में अल्पना बना दूं ।
हाथों में मेंहदी लगा दूँ ।
माथे पर तिलक कर दूँ ।
दूधिया हँसी को डिठौना लगा दूँ ।
भोलेपन को नज़र का टीका पहना दूँ ।
खेतों में मीलों सरसों बिछा दूँ ।

रंग से सराबोर
इस दुनिया का
कोई भी कोना
क्यों रहे कोरा ?


रविवार, 18 नवंबर 2018

जल छंद




फूल पत्तियों पर ठहरी
जल की एक बूंद
क्षणभंगुर है,
जीवन की तरह ।


पर उस एक क्षण में ही
सुंदरतम है ।


एक श्वास भर की
प्रांजल छवि है
अंतरतम की ।


इस एक पुलकित 
जल छंद पर
न्यौछावर है
सारा जीवन ।






शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

जो साथ चल दे




कविता तो वो है
जो झकझोर कर
जगा दे ।

कविता तो वो है
जो अपना
मंतर चला दे ।

कविता तो वो है
जो थपकी देकर
सुला दे ।

कविता तो वो है
जो जीवन को मधुर
रागिनी बना दे ।

कविता तो वो है
जो पाषाण में
प्राण प्रतिष्ठा कर दे ।

नव ग्रह चाँद सितारे
आकाश से टूटते तारे
सबसे मित्रता करा दे ।

कविता तो वो है
जो मनचले वक़्त की
नब्ज़ पढ़ना सिखा दे ।

कविता तो वो है
जो बहकने पर   
हाथ पकड़ कर
रोक ले ।

कविता तो वो है
जो डटे रहने का
साहस दे ।

कविता तो वो है
जो संवेदनशील बनाये ।

कविता तो वो है
जो जीवन
छंद में ढाल दे ।

कविता तो वो है
जो ध्रुव तारा बन
पथ प्रशस्त करे ।

कविता तो वो है
जो नतमस्तक कर दे ।

या फिर कविता वो है
जो कंधे पर हाथ रख 
घंटों बात समझाए,
और साथ चल दे ।

तथास्तु




कठिन तप करने पर
ठाकुरजी ने प्रसन्न होकर
भोले भक्त से कहा,
सेवा से संतुष्ट हुआ
बोल तुझे चाहिए क्या ?
भक्त ने अपना मन टटोला
फिर सकुचा कर प्रभु से बोला
अपने लिए कुछ मांगने का
आज बिल्कुल मन नहीं ।
आपने जो अनमोल जीवन दिया
मेरे लिए पर्याप्त है बस वही ।
पर यदि देने का मन है आपका
तो जो वंचित है भक्ति से आपकी
जीवन का औचित्य जो समझा नहीं,
उसे दीजिए सौंदर्य बोध जीवन का ।
ठाकुरजी हँस दिए और भक्त से कहा
वत्स तूने तो मुझे ही ठग लिया । 
मांगने योग्य जो था सब ले लिया ।
तपते-तपते अहर्निश तूने जान लिया
यदि अपना सर्वस्व मुझको सौंप दिया
तो अपने लिए मांगने को रहा क्या ?
भक्त प्रह्लाद, ध्रुव और नचिकेता
इन्होंने अपना सब कुछ भुला दिया
और जग का कल्याण मांग लिया ।
स्वयं अपना दायित्व मुझे सौंप कर
जनसेवा का संकल्प सहर्ष लिया ।
भक्त ने वरदान का मान रखा
अपने पहले दूसरों का ध्यान किया ।
अपना सर्वस्व समर्पित कर
ठाकुर कृपा को वर लिया ।


रविवार, 28 अक्तूबर 2018

शरद का चंद्रमा



झोंपड़ी में बसेरा हो
या अमीरों की बस्ती में
जहां भी बसता हो,
हर किसी के पास आज
शहद में घुला
बताशे-सा ..
शरद की नरम ठंड में
रुई के फाहों से
बादलों में दुबका..
दूधिया चाँद है ।

खुले आसमान की
बादशाहत सबके पास है ।

बेइंतेहा खूबसूरत नज़ारा
अमनो-चैन की घड़ी
और दिलों में खुशी
पाकीज़ा चांदनी सी ..
कुछ देर ही सही,
इस बेशुमार दौलत का
आज हर कोई हक़दार है ।