कविता तो वो है
जिसे जिया जा सके ।
जिसे जिया जा सके ।
सान पर
चढ़ाया जा सके ।
विसंगतियों की
तेज़ धार पर
आज़माया जा सके ।
तेज़ धार पर
आज़माया जा सके ।
जिसके बूते पर
अपने सिद्धांतों पर
अड़ा जा सके ।
अड़ा जा सके ।
कविता तो वो है
जिसे जीवन गढ़े
मूर्तिकार की तरह ।
जिसे जीवन गढ़े
मूर्तिकार की तरह ।
जो मिटाए ना मिटे
गोदने की तरह ।
गोदने की तरह ।
या फिर वो है
जिसे मन की मिट्टी में
बोया जा सके ।
दिन-प्रतिदिन के चिंतन में
रोपा जा सके ।
जिसे मन की मिट्टी में
बोया जा सके ।
दिन-प्रतिदिन के चिंतन में
रोपा जा सके ।
कविता तो वो है
जो सहज सहेली बन
जी की बात
झट जान जाए ।
जो सहज सहेली बन
जी की बात
झट जान जाए ।
कविता तो वो है
जिसे अपनाया जा सके ।
हम-तुम जो बोलते हैं,
उस बोली में
जिसे अपनाया जा सके ।
हम-तुम जो बोलते हैं,
उस बोली में
जनम घुट्टी की तरह
घोला जा सके ।
कविता तो वो है
जिसे जिया जा सके ।
जिसे जिया जा सके ।