मंगलवार, 28 अगस्त 2018

करमजला बना गोविंदा


एक था गोविंदा ।                                                 
सब कहते थे करमजला ।
माँ - बाप का इकलौता बेटा ।
पर पैरों से लाचार था ।
बैसाखी लेकर चलता था ।
किसी काम का ना था ..
खेत क्या जोतता ?

बच्चे जब खेलते थे ।
दूर बैठा तकता रहता ।
गुपचुप रोता रहता ।

एक दिन माँ ने देखा ।
गोविंदा चुपचाप बैठा
टूटे - फूटे सामान का
कुछ बना रहा था .
माँ ने सोचा ,
रोने से कुछ करना अच्छा ।

फिर एक दिन माँ ने देखा,
बच्चों ने घेर रखा था ।
गोविंदा कुछ दिखा रहा था । 
एक अटपटा खिलौना था । 
पर सबके मन को भा रहा था । 
और गोविंदा मुस्कुरा रहा था । 

बस माँ ने ठान लिया । 
अब यही करेगा मेरा बेटा । 
टूटे - फूटे को जोड़ेगा । 
फूटी किस्मत संवारेगा । 
पैरों पे खड़ा नहीं हो सकता तो क्या ?
हाथ के हुनर से अपना पेट भरेगा । 

फिर क्या था !
माँ - बाप ने बीड़ा उठाया । 
करमजले को खिलौने बनाना 
सबने मिल कर सिखाया । 
सारे गाँव ने करमजले को अपनाया । 
जो काम सहानुभूति से कभी ना होता। 
वही हुनर ने कर दिखाया । 
अब कोई बच्चे के लाचार पैर नहीं देखता । 
अब समाज बन गया है मनसुखा । 
और मनसुखा के कंधे पर बैठा 
करमजला अब गोविंदा हो गया है !



रविवार, 5 अगस्त 2018

एक आला मित्रता के नाम का

कहो मित्र,
कैसे हो ?
एक अरसा हुआ,
न सलाम न दुआ ?
सब कुशल तो है ना ?
शिकायत नहीं करता,
बस दिया उलाहना ।
जिससे तुम जान जाओ,
याद बहुत आते हो ।
मन मसोस कर
कुछ करने पर,
अब भी टोक देते हो ।
परछाईं की तरह,
साथ चलती है तुम्हारी याद ।
पक्की है,
हमारी मित्रता की बुनियाद ।
क्या फ़र्क पड़ता है ?
तुम्हारा पास होना,
ना होना ।
जब तक निरंतर
होता रहे संवाद,
मन से मन का ।
मन का कोई कोना,
हो ना सूना,
इसलिए कहा ।
एक आला
कृष्ण-सुदामा के नाम का,
एक आला
हमारी मित्रता के नाम का,
सदा संजोए रखना ।


शनिवार, 4 अगस्त 2018

माँ कभी छोड़ के जाती है क्या ?

माँ चली गई ।

बिटिया रानी ..
बहुत बदलेगी ज़िन्दगी अभी ।
तुम भी बहुत बदलोगी ।

माँ के लिए,
जो आंसू आंखों में आए,
उन्हें निरर्थक बहने मत देना ।
अपने हृदय में बो देना ।
फिर पूरे अधिकार से
जीवन भर सींचना ।

माँ की स्मृति को
अलमारी में मत सहेजना ।
उनकी एक-एक बात को
अपने आचरण में
जीवित रखना ।
जीवन पर्यंत ..
आराधना करना ।

उनकी व्यथा को
सृजन का रूप देना ।
उनके स्वप्नों को
अपने रंग देना ।

माँ कभी
छोड़ के जाती है क्या ?
जब जी हो ..
मन के दर्पण में
उनको देखना ।

रविवार, 22 जुलाई 2018

कनिष्ठा

हाथ छुड़ा कर, 
कभी भी एकाकी, 
निर्जन जीवन पथ
पार मत करना ।
ठाकुरजी की उंगली
कस के पकड़े रहना ।
ठोकर लगी भी
तो गिरोगे नहीं ।

जो कनिष्ठा पर
गोवर्धन धारण करते हैं,
पर समर्पित भाव
को डूबने नही देते ।
वो तर्जनी पर
सुदर्शन चक्र भी
धारण करते हैं,
सौवीं ग़लती पर
क्षमा नहीं करते ।

इन्हीं उंगलियों पर बाँसुरी
धारण करते हैं,
जपते हैं,
राधा नाम अविराम ।
जितनी मधुर उनकी मुस्कान,
बजाते हैं मुरली
उतनी ही सुरीली,
मिसरी-सी मीठी,
मानो लोरी ।

और प्रसन्न वदन जब
हौले से हँस कर,
नतमस्तक शीश पर
रखते हैं हस्त कमल,
सकल द्वंद, भव फंद,
हो जाते हैं दूर ।

इसलिए वत्स,
कभी मत छोड़ना,
कस कर
उंगली पकड़े रहना ।


शनिवार, 21 जुलाई 2018

मांग लेना मनचाहा

स्नेह के अधिकार से
मांगो तो मनचाहा
मिलता है ।
और क्या है
मन की चाहना,
ये भी मायने रखता है ।
देने वाला
देने से पहले
लेखा-जोखा करता है ।
किसको देना है ?
कितना देना है ?
किन शर्तों पर देना है ?
पर तुम ये सब
मत सोचना ।
मनचाहा मांग लेना ।

नभ से
चाँद-तारे नहीं,
विशाल हृदय और
दिल में सबके लिए
जगह मांगना ।

हरे-भरे पेड़ों से
फल-फूल और
ठंडी छाँव ही नहीं,
उस राह से जो गुज़रे
उदारता के बीज बोते हुए,
उन नेकदिल पथिकों का
पता-ठिकाना मांगना ।

नदी से
गगरी भर जल ही नहीं,
लहरों का
निश्छल भावावेग,
लय में
बहते रहने का मंत्र,
और मन की गहराई मांगना ।

ठोकरों से संभलने का हौसला मांगना ।
चट्टानों से अडिग दृढ़ता मांगना 
कड़वे अनुभवों से संवेदना मांगना ।
फूलों से पराग मांगना ।
जुगनुओं से रोशनी मांगना ।
भवितव्य से चुनौती मांगना ।
भाग्य से कर्मठ जीवन मांगना ।
ठाकुरजी से सद्बुद्धि और भक्ति मांगना ।

कुछ ना रह जाए अनकहा ।
मांग लेना मनचाहा ।


शनिवार, 14 जुलाई 2018

ढीठ

तना झुक गया है,
फिर भी,
तन कर
चुनौती दे रहा है,
आने वाले
समय की
अनिश्चितता को ।

या झुक कर
सलाम कर रहा है,
सर पर तने
नीले आकाश की
असीम संभावनाओं को ।

ये पेड़ ज़िद्दी,
बन कर पहेली,
कब से
खड़ा है
मेरे रास्ते में,
ठेल रहा है मुझे
ठहर कर
सोचने को ।

बुधवार, 4 जुलाई 2018

फूलों की माला

फूलों की माला गूँथना
मन के भाव पिरोने जैसा है ।
बिना बिंधे बिना बंधे
फूल वेणी में
ठहर नहीं सकते ।
यदि बिखर गए
तो माला बने कैसे ?
अनुभव की चुभन बिना
फूलों में पराग कैसा ?
रंग और सुगंध बिना
फूल अर्पित हों कैसे ?
फूलों की सरल सरसता
भक्ति की पुनीत भावना ।
दोनों जब खिलते हैं,
माला में पिरोये जाते हैं ।