बुधवार, 28 मार्च 2018

अपने बड़ों के हाथों का बुना स्वेटर

एक ठण्ड ऐसी होती है,
जो हड्डियों से उतरती हुई, 
भीतर तक -
सब कुछ जमा देती है ।
ऐसी ठण्ड में काम आता है
किसी के हाथ का बुना स्वेटर ।

अक्सर ये माँ के हाथों का बुना होता है ।
क्योंकि अब तो सब बना - बनाया मिलता है ।

हाथ का बुना स्वेटर बड़े काम का होता है ।
इसमें बुनने वाले का प्यार बुना होता है।   
इसे जब बुना गया,
बड़ी देर तक सोचा गया  . .
कौनसा रंग आप पर फबेगा ।
कैसा डिज़ाइन आप पर जंचेगा ।
बहुत सोच-समझ कर, 
भाभी , बहन , पड़ोसन से पूछ - पूछ कर,
बुनाई की किताब और बढ़िया ऊन खरीदा गया ।
और फिर जाकर बुनाई का सिलसिला शुरू हुआ ।

ऊन की सलाइयां टाइपराइटर की तरह
खट - खट चलने लगीं फटाफट,
यूँ समझिये जंग ही छिड़ गई ! 
जहां काम से फ़ुर्सत मिली,
सलाइयों की जुगलबंदी होने लगी !
ऊन का गोला ता-ता-थैया इधर-उधर
फुदकते हुए छोटा होने लगा !
गुनगुनी धूप में छत पर,
या बरामदे के तख़्त पर,
बातों का मजमा जमता
और हाथ चलता रहता ।
बार-बार बुला कर नाप लिया जाता ।
नौनिहालों के कौतूहल का ठिकाना क्या !
स्वेटर लम्बा होता जाता ।
सलाइयों का मंतर चलता जाता ।
एक अनोखा अजूबा था !
अलादीन के चिराग से कम ना था !
ऐसा तिलिस्मी था जादू बुनने वालों की
उँगलियों और सलाइयों का !
डिज़ाइन आप ही बनता जाता था !
जो चाहे उनसे बनाने को कह दो !

अब ना वो बचपन रहा ना बचपन का भोलापन ।
ना सर पर रहा दादी, नानी, मौसी, बुआ का आँचल ।
पर अब भी उनके हाथ का बुना स्वेटर,
जाड़ों में बहुत गरमाता और पुचकारता है ।
ममता से सर पर रखा हाथ बहुत याद आता है ।
उनकी थपकियों,लोरियों,कहानियों वाली नरम गोद में, 
निश्चिन्त सोने का एहसास कराता है,
अपने बड़ों के हाथों का बुना स्वेटर ।

गुरुवार, 22 मार्च 2018

हाथ के बुने स्वेटर


बुआ कहती थीं,
कड़ाके की ठण्ड में जब तक 
हाथ के बुने स्वेटर ना पहनो 
चैन नहीं पड़ता  . . 
जाड़ा सहन नहीं होता ।
हाथ के बुने स्वेटर में 
बुनी होती हैं 
बुनने वाले की भावनाएं ।

जितने दिन 
स्वेटर बुना गया होगा,
जिसके लिए बुना गया उसे 
ऊन के फंदे चढ़ाते - उतारते 
बहुत याद किया गया होगा ।
इसलिए हाथ के बुने स्वेटर में 
स्नेह और स्मृतियों की ऊष्मा  . . 
आत्मीयता बसी होती है ।

जिस गुनगुनी धूप में
कभी छत पर,
कभी आँगन में,
कभी खाट पर,
कभी आरामकुर्सी पर 
सुस्ताते हुए 
बतियाते हुए,
बीच -बीच में 
हाथ तापते हुए  
स्वेटर बुना गया ,
उस कुनकुनी धूप की गरमाहट 
हाथ के बुने स्वेटर 
भीतर तक पहुंचाते हैं ।
मन की तंग गलियों में जमी 
गलाने वाली 
सर्दी को पिघलाते हैं ।

जो पहना है तुमने, 
ना जाने कितनी बार 
ये स्वेटर सहलाया गया है ।  
सोच में डूबी 
आँखें पोंछ-पोंछ कर 
थपथपाया गया है ।  
बहुत आराम देता है 
हाथ का बुना स्वेटर ।
क्योंकि ये ऊन से नहीं 
बड़े प्यार-से बुना गया है ।        
     

गुरुवार, 1 मार्च 2018

आज ही होली है !





होली 
बहुत कुछ दे जाती है ।

दुःख देती हैं 
जो मान्यताएं ,
उन्हें 
होम कर देने का 
साहस ।

मनमोहक रुपहले रंग 
जीवन में, 
निरंतर घोलने की 
चाहत ।

झूठी अपेक्षाएं ,
थके-हारे मन के 
क्लेश,
निरर्थक दंश,
सब ध्वस्त करने का 
मनोबल ।

होलिका दहन में 
भस्म करते हुए 
टूटा . . पुराना . . बेकार का बोझा,
समस्त दुराग्रह . . पूर्वाग्रह . .  
बहुत कुछ साथ ले जाती है 
होली ।
  
मनाओ मन से तो 
एकनिष्ठ लगन की लौ 
है होली ।
खेलो सरल भाव से तो 
निश्छल रंगों का 
पावन पर्व है होली ।



मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

कमल के फूल




कुछ बातें 
गड़ती हैं 
कलेजे में ऐसे, 
जैसे शब्द 
बन गए हों शूल ।

और कुछ बातें, 
धीरे - धीरे 
खिलती हैं 
मन के ताल में,
मानो कमल के फूल । 


बातें



बातें 
बीज की तरह होती हैं ।
जो बो दो ,
वही उपजता है 
मन उपवन में ।
इसीलिए तो 
कहीं उगते हैं कैक्टस ,
कहीं बबूल के कांटे ,
कहीं सरसों के खेत लहलहाते ,
कहीं अमर बेल, 
और कहीं खिलते हैं 
दूर दूर तक, 
बेशुमार, 
फूल ही फूल ।   

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

निराला















एक हुए थे निराला 
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला । 
जिनकी कालजयी रचना, 
राम की शक्ति पूजा, 
शूरवीरों की आराधना, 
अब तक अलख जगाती है ।

एक 
सपूत भारत माता के 
बहादुर सिपाही ये -
कॉर्पोरल ज्योति प्रकाश निराला । 
जिस शूरवीर ने 
कर दिखाया, 
वास्तव में 
कैसे निभाई जाती है 
राम की शक्ति पूजा । 
कैसे चढ़ाया जाता है 
जीवन का नैवेद्य । 
कैसे संपन्न होती है 
देशभक्ति आराधना ।