tag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post403791273941589874..comments2024-03-23T22:39:59.865+05:30Comments on नमस्ते namaste : बचपन की पतंग नूपुरं noopuramhttp://www.blogger.com/profile/18200891774467163134noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post-12853271716420472692020-01-18T00:23:16.393+05:302020-01-18T00:23:16.393+05:30@anmolmathur सा आप जिस पत्र की बात कर रहे थे, उसे ...@anmolmathur सा आप जिस पत्र की बात कर रहे थे, उसे पढ़ने के लिए ये कहानी पढ़िए ।<br /><br />काकी<br />सियारामशरण गुप्त<br /><br /><br /><br />उस दिन बड़े सबेरे जब श्यामू की नींद खुली तब उसने देखा - घर भर में कुहराम मचा हुआ है। उसकी काकी – उमा - एक कम्बल पर नीचे से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए भूमि-शयन कर रही हैं, और घर के सब लोग उसे घेरकर बड़े करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं।<br /><br />लोग जब उमा को श्मशान ले जाने के लिए उठाने लगे तब श्यामू ने बड़ा उपद्रव मचाया। लोगों के हाथों से छूटकर वह उमा के ऊपर जा गिरा। बोला - “काकी सो रही हैं, उन्हें इस तरह उठाकर कहाँ लिये जा रहे हो? मैं न जाने दूँ।”<br /><br />लोग बड़ी कठिनता से उसे हटा पाये। काकी के अग्नि-संस्कार में भी वह न जा सका। एक दासी राम-राम करके उसे घर पर ही सँभाले रही।<br /><br />यद्दापि बुद्धिमान गुरुजनों ने उन्हें विश्वास दिलाया कि उसकी काकी उसके मामा के यहाँ गई है, परन्तु असत्य के आवरण में सत्य बहुत समय तक छिपा न रह सका। आस-पास के अन्य अबोध बालकों के मुँह से ही वह प्रकट हो गया। यह बात उससे छिपी न रह सकी कि काकी और कहीं नहीं, ऊपर राम के यहाँ गई है। काकी के लिए कई दिन तक लगातार रोते-रोते उसका रुदन तो क्रमश: शांत हो गया, परन्तु शोक शांत न हो सका। वर्षा के अनन्तर एक ही दो दिन में पृथ्वी के ऊपर का पानी अगोचर हो जाता है, परन्तु भीतर ही भीतर उसकी आर्द्रता जैसे बहुत दिन तक बनी रहती है, वैसे ही उसके अन्तस्तल में वह शोक जाकर बस गया था। वह प्राय: अकेला बैठा-बैठा, शून्य मन से आकाश की ओर ताका करता।<br /><br />एक दिन उसने ऊपर एक पतंग उड़ती देखा। न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा। विश्वेश्वर के पास जाकर बोला - “काका मुझे पतंग मँगा दो।”<br /><br />पत्नी की मृत्यु के बाद से विश्वेश्वर अन्यमनस्क रहा करते थे। “अच्छा, मँगा दूँगा।” कहकर वे उदास भाव से और कहीं चले गये।<br /><br />श्यामू पतंग के लिए बहुत उत्कण्ठित था। वह अपनी इच्छा किसी तरह रोक न सका। एक जगह खूँटी पर विश्वेश्वर का कोट टँगा हुआ था। इधर-उधर देखकर उसने उसके पास स्टूल सरकाकर रक्खा और ऊपर चढ़कर कोट की जेबें टटोलीं। उनमें से एक चवन्नी का आविष्कार करके तुरन्त वहाँ से भाग गया।<br /><br />सुखिया दासी का लड़का - भोला - श्यामू का समवयस्क साथी था। श्यामू ने उसे चवन्नी देकर कहा - “अपनी जीजी से कहकर गुपचुप एक पतंग और डोर मँगा दो। देखो, खूब अकेले में लाना, कोई जान न पावे।”<br /><br />पतंग आई। एक अँधेरे घर में उसमें डोर बाँधी जाने लगी। श्यामू ने धीरे से कहा, “भोला, किसी से न कहो तो एक बात कहूँ।”<br /><br />भोला ने सिर हिलाकर कहा - “नहीं, किसी से नहीं कहूँगा।”<br /><br />श्यामू ने रहस्य खोला। कहा - “मैं यह पतंग ऊपर राम के यहाँ भेजूँगा। इसे पकड़कर काकी नीचे उतरेंगी। मैं लिखना नहीं जानता, नहीं तो इस पर उनका नाम लिख देता।”<br /><br />भोला श्यामू से अधिक समझदार था। उसने कहा - “बात तो बड़ी अच्छी सोची, परन्तु एक कठिनता है। यह डोर पतली है। इसे पकड़कर काकी उतर नहीं सकतीं। इसके टूट जाने का डर है। पतंग में मोटी रस्सी हो, तो सब ठीक हो जाय।”<br /><br />श्यामू गम्भीर हो गया! मतलब यह, बात लाख रुपये की सुझाई गई है। परन्तु कठिनता यह थी कि मोटी रस्सी कैसे मँगाई जाय। पास में दाम है नहीं और घर के जो आदमी उसकी काकी को बिना दया-मया के जला आये हैं, वे उसे इस काम के लिए कुछ नहीं देंगे। उस दिन श्यामू को चिन्ता के मारे बड़ी रात तक नींद नहीं आई।<br /><br />पहले दिन की तरकीब से दूसरे दिन उसने विश्वेश्वर के कोट से एक रुपया निकाला। ले जाकर भोला को दिया और बोला - “देख भोला, किसी को मालूम न होने पाये। अच्छी-अच्छी दो रस्सियाँ मँगा दे। एक रस्सी ओछी पड़ेगी। जवाहिर भैया से मैं एक कागज पर ‘काकी’ लिखवा रक्खूँगा। नाम की चिट रहेगी, तो पतंग ठीक उन्हीं के पास पहुँच जायेगी।”<br /><br />दो घण्टे बाद प्रफुल्ल मन से श्यामू और भोला अँधेरी कोठरी में बैठे-बैठे पतंग में रस्सी बाँध रहे थे। अकस्मात शुभ कार्य में विघ्न की तरह उग्ररूप धारण किये विश्वेश्वर वहाँ आ घुसे। भोला और श्यामू को धमकाकर बोले - “तुमने हमारे कोट से रुपया निकाला है?”<br /><br />भोला सकपकाकर एक ही डाँट में मुखबिर हो गया। बोला - “श्यामू भैया ने रस्सी और पतंग मँगाने के लिए निकाला था।” विश्वेश्वर ने श्यामू को दो तमाचे जड़कर कहा - “चोरी सीखकर जेल जायेगा? अच्छा, तुझे आज अच्छी तरह समझाता हूँ।” कहकर फिर तमाचे जड़े और कान मलने के बाद पतंग फाड़ डाला। अब रस्सियों की ओर देखकर पूछा - “ये किसने मँगाई?”<br /><br />भोला ने कहा - “इन्होंने मँगायी थी। कहते थे, इससे पतंग तानकर काकी को राम के यहाँ से नीचे उतारेंगे।”<br /><br />विश्वेश्वर हतबुद्धि होकर वहीं खड़े रह गये। उन्होंने फटी हुई पतंग उठाकर देखी। उस पर चिपके हुए कागज पर लिखा हुआ था - “काकी।”नूपुरं noopuramhttps://www.blogger.com/profile/18200891774467163134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post-73926072505152805902020-01-16T11:46:34.489+05:302020-01-16T11:46:34.489+05:30आदरणीय शास्त्रीजी, आपका हार्दिक आभार ।
नमस्कार ।आदरणीय शास्त्रीजी, आपका हार्दिक आभार ।<br />नमस्कार ।नूपुरं noopuramhttps://www.blogger.com/profile/18200891774467163134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post-81968887802532749182020-01-16T11:45:26.332+05:302020-01-16T11:45:26.332+05:30धन्यवाद नम्रता । हमारा तुम्हारा बचपन मिलता-जुलता ह...धन्यवाद नम्रता । हमारा तुम्हारा बचपन मिलता-जुलता है !! : )नूपुरं noopuramhttps://www.blogger.com/profile/18200891774467163134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post-1906410467528837852020-01-16T11:44:23.358+05:302020-01-16T11:44:23.358+05:30बचपन की स्मृति सबसे अनमोल होती हैं ।
सागर की लहरों...बचपन की स्मृति सबसे अनमोल होती हैं ।<br />सागर की लहरों की तरह बार-बार लौट कर आती हैं । बेशक़ पतंग आसमान को लिखा धरती का ख़त है । क्या खूब ख़याल है । शुक्रिया ।<br />आपकौ 'काकी' कहानी याद है ?नूपुरं noopuramhttps://www.blogger.com/profile/18200891774467163134noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post-55030908458565546622020-01-16T06:20:00.366+05:302020-01-16T06:20:00.366+05:30बहुत सुन्दर और सार्थकबहुत सुन्दर और सार्थकडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post-52633485992873487712020-01-16T00:26:27.515+05:302020-01-16T00:26:27.515+05:30अपना बचपन याद आ गया।अपना बचपन याद आ गया।नम्रताhttps://www.blogger.com/profile/12537642174042648634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post-24891154814282260792020-01-15T23:50:41.683+05:302020-01-15T23:50:41.683+05:30वाह। आपके अंदर बसा जयपुर आपको पुकार रहा है।
वैसे,...वाह। आपके अंदर बसा जयपुर आपको पुकार रहा है। <br />वैसे, don't you think की पतंग धरती के द्वारा आसमान की भेजा हुआ एक पत्र है?Anmol mathurhttps://www.blogger.com/profile/14601017001051163148noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post-15908814934232193452020-01-15T21:55:27.009+05:302020-01-15T21:55:27.009+05:30धन्यवाद, विर्क जी. आपका बहुत-बहुत आभार. धन्यवाद, विर्क जी. आपका बहुत-बहुत आभार. नूपुरं noopuramhttps://www.blogger.com/profile/18200891774467163134noreply@blogger.com