रविवार, 21 फ़रवरी 2021

विद्या ददाति विनयम्

विलक्षण है निस्संदेह 
आपकी बहुआयामी प्रतिभा ।

किंतु क्या करें बताइए 
आपकी विद्वता का ?
जिसके भार तले 
साधारण जन मन
दबते चले जाते हैं ।
धराशायी हो जाता है 
आत्मविश्वास इनका,
तिनका-तिनका जोङा
जो साहस जुटा कर ।

लाभ क्या हुआ?
यदि ज्ञान आपका
हमेशा आंखें तरेरता,
तत्काल कर दे स्वाहा 
किसी की सीखने की 
प्रबल इच्छाशक्ति ?

हमने सुना तो ये था,
फल-फूल से लदा
वृक्ष और झुक जाता है ।
जो जितना ज़्यादा 
जानता है,
उतना ही विनम्र 
होता चला जाता है ।

यदि लक्ष्य था विद्या का 
प्रभुत्व सिद्ध करना,
तो चाबुक ही क्या बुरा था,
अज्ञानी को हांकने के लिए ?
तुम बिल्कुल भूल गए क्या ?
समाज में सबको नहीं मिलता 
अवसर एक जैसा सीखने का ।

गुरुता वो नहीं जो किसी सरल सीखने वाले को
खामियां गिनवाए,अहसास कराए तुच्छता का ।
विद्या है सजल आशीष माँ का,सदा साथ रहता ।
शिक्षा है एकमात्र अनिवार्य अवलंब जीवन का ।
प्रथम संस्कार है सबसे सीखते रहने की विनम्रता ।
दीक्षा मंत्र है निर्भय हो प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता ।
अनुगत को सजग स्वालंबन में ढालने की दक्षता ।
अंतर में अंकुर आत्मविश्वास का रोपने की उदारता ।

22 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर!
    ज्ञान से भूखंड को नष्ट भी किया जा सकता है, और उसी ज्ञान को सत में लगा के सेवा भी की जा सकती है। Intention matters 😊

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    1. जी,अनमोल सा. उस एक नाज़ुक पल में ईश्वर पग डिगने ना दें. यही प्रार्थना है.
      हार्दिक आभार.

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    2. रास्ते में मील के पत्थर ही नहीं,
      क़दम-क़दम पर दोराहे और चौराहे भी
      आएंगे और चुनना होगा मार्ग अपना.
      उस क्षण मन में रखना विनम्रता.
      स्पष्ट दिखाई देगा आगे का रास्ता.

      धन्यवाद,अनमोल सा.

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    1. धन्यवाद, मनोज जी.
      नमस्ते पर आपका स्वागत है. आशा है पुनः आगमन होगा.

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  3. उत्तर
    1. धन्यवाद, आलोक जी.
      हमेशा समय निकाल कर पढने और कुछ कहने के लिए हार्दिक आभार.

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. धन्यवाद दिव्या जी. इस मंच पर स्थान देने के लिए.

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  5. उत्तर
    1. धन्यवाद, ओंकार जी.
      आपकी सहृदय सराहना पाकर प्रसन्नता होती है.

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  6. बहुत-बहुत आभार,कामिनी जी.चर्चा का विषय बहुत अच्छा है.
    पढने के लिए परम उत्सुक हूँ.

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  7. गहन चिंतन! विनम्रता के बिना शिष्य ही नहीं गुरु भी अपने गुरुत्व से ढलान पर आ खड़ा होता है।
    सीखने और सीखाने में धैर्य दोनों में अपेक्षित है।
    वैसे ज्ञान का अभिमान करने वाला ज्ञानी होता है करता?
    सहज प्रवाह, मन की बात ।
    सुंदर सृजन।

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    1. अपने विचार व्यक्त करने के लिए सविनय आभार आपका । संभवतः स्वामी विवेकानंद यही कहना चाहते थे जब उन्होंने शिक्षा और ज्ञान प्राप्ति में अंतर समझाया था । शायद वही फ़र्क जो आदमी और इंसान में होता है ।

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  8. उत्तर
    1. आपका नमस्ते पर हार्दिक स्वागत है ।
      धन्यवाद । आशा है, आपका आना-जाना अब लगा रहेगा ।

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  9. धराशायी हो जाता है
    आत्मविश्वास इनका,
    तिनका-तिनका जोङा
    जो साहस जुटा कर । सुन्दर रचना

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    1. धन्यवाद संदीप जी ।
      नमस्ते पर हार्दिक स्वागत है आपका ।
      पढ़ते रहियेगा । अपने विचार व्यक्त करते रहिएगा । नमस्ते ।

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