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बुधवार, 17 अप्रैल 2019

टूटे से फिर ना जुड़े


अनायास ही,
हाथ से छूट गई !
छन्न से टूट गई,
मेरी प्रिय चूड़ी !
हा कर ताकती रह गई ..
कुछ ना कर सकी !

क्या फिर से जुड़ सकेगी 
चूड़ी जो टूट गई ?
क्या दिल भी 
टूटते हैं यूँ ही ?
क्या स्वप्न भी   
चूर-चूर होते हैं ऐसे ही ?
टूट कर जुड़ते भी हैं कभी ?

पता नहीं.
बाबा रहीम तो कहते हैं यही ..
टूटे से फिर ना जुड़े 
जुड़े गाँठ पड़ जाए .. 

फिर भी 
कोशिश तो करते ही होंगे सभी
टूटे को जोड़ने की.

कोशिश फिर ये 
क्यूँ ना करें ?
स्वप्न हो या दिल कभी 
टूटे ही नहीं !

संभाल कर रखें सभी 
सहेज कर रखें सदा ही 
स्वप्न हो, दिल हो या चूड़ी.
   

11 टिप्‍पणियां:


  1. कोशिश फिर ये
    क्यूँ ना करें ?
    स्वप्न हो या दिल कभी
    टूटे ही नहीं !
    बहुत-बहुत सुन्दर लिखा है आपने । शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बहुत सुन्दर नुपूर जी हृदयग्राही रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह !

    संभाल कर रखें सभी
    सहेज कर रखें सदा ही
    स्वप्न हो, दिल हो या चूड़ी.

    जी यही करना उचित होगा
    उम्दा रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर ...सार्थक... सारगर्भित रचना...।
    फिर भी
    कोशिश तो करते ही होंगे सभी
    टूटे को जोड़ने की.
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सार्थक और सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  7. कोशिश करें कि कुछ टूटे ही नहीं। कोशिश तो करते हैं फिर भी टूट ही जाता है कुछ ना कुछ....
    बेहतरीन अभिव्यक्ति !!!

    जवाब देंहटाएं

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