सोमवार, 2 जुलाई 2018

बनी रहे यह भावना

चाह कर भी
संभव नहीं होता सदा,
दर्द कम करना किसी का ।
दर्द कम करना
तुमने चाहा,
इतना ही बहुत है ।

क्यूंकि,
वक़्त बदलता है ।
वक़्त की फ़ितरत है ।
हमदर्द बदलता है ।
ये भी हक़ीक़त है ।

ये कौन नई बात है ?
सबके अपने हालात हैं ।
पर मन भी हठधर्मी है ।
आस नही छोड़ता ।

कई बार चोट खाता है ।
पर हर बार आस बंधाता है ।
हो ना हो इस बार देखना ।
देवता नहीं दोस्त मिलेगा ।

तुम्हें आशीर्वाद हमारा ।
जब किसी को दुखी देखना,
उसका दुख कम करने का
भरसक प्रयास करना ।
हर बार तुम्हारे बस में
हो ना हो कुछ बदलना,
तुम्हारे मन में हमेशा रहे
जब भी जितनी हो सके
उतनी किसी की व्यथा
कम करने की भावना ।