शुक्रवार, 29 जून 2018

महफ़ूज़



घर के खिड़की - दरवाज़े 
इन दिनों 
बंद करते वक़्त 
बहुत आवाज़ करते हैं ।  
जैसे घर में 
रहने वालों के 
अहम टकराते हों 
बात बात पर । 

कल की तूफ़ानी बरसात में
घर के बाहर 
पहरेदारी करता 
बड़ा छायादार पेड़ भी 
धराशायी हो गया ।

घर के भीतर और बाहर 
अब पड़ने लगी हैं दरारें ।
मैं असमंजस में हूँ ।

मुश्किल वक़्त में 
मैं कहाँ पनाह लूँ  ?
भीतर या बाहर  . . 
मैं कहाँ महफ़ूज़ हूँ ?