शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

बेटियां

क्यों हो जाती हैं विदा 
घर से बेटियां ?
गुपचुप सोचते हैं सदा 
दुनिया भर के पिता ।

सूना हो जाता है आँगन सारा,
जब-जब चली जाती है बिटिया ।  
कोई नहीं रखता ध्यान इतना,
बिना कहे जितना करती हैं बेटियां ।

घर आते ही पानी का गिलास देना ।
सामान का थैला हाथ से ले लेना ।
बटुआ और चश्मा ढूंढ कर देना ।
पैंट-कमीज़ प्रेस कर रख देना ।
दवा हाथ में ला कर दे देना ।
घर भर में चिड़िया-सा चहचहाना ।
बहुत मन दुखाता है उसका चले जाना ।

जनम भर की कमाई  . . अपनी बिटिया दे देना ।
इसे ही कन्यादान कहते हैं ना ? 

पाल-पोस कर बड़ा करना,
और दूसरे घर भेज देना ।
अपने कलेजे का टुकड़ा ,
किसी और को सौंप देना ।

अच्छे संस्कार अपनी बिटिया को देना ।
उसे इसी पूँजी से घर बसाते देखना ।
या एकाकी दीपशिखा-सी स्वावलंबी बनते देखना ।
पिता के आशीर्वाद का सम्मान है ना ?
पिता की नम आँखों का स्वाभिमान है ना ?

बस कभी-कभी जब जगह पर नहीं मिलता  . . 
चश्मा  . . दवा  . . मफ़लर या बटुआ  . . 
बहुत - बहुत याद आती है बिटिया ।      
         

9 टिप्‍पणियां:

  1. श्री Digvijay Agrawal जी,

    आपका बहुत आभार ।
    हलचल के पन्ने पर जगह मिलती है तो कुछ और लोगों तक पहुंचना संभव हो जाता है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत याद आती हैं बेटियां....
    बहुत सुन्दर रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद सुधाजी .
      सचमुच बहुत याद आती हैं बेटियां .
      जहाँ भी हों .

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. जी नीतू जी .
      धन्यवाद .
      सुन्दर होती है बेटियों की याद .
      बेटियां ही सुनती हैं दिल की फ़रियाद .
      पढ़ती रहिएगा .

      हटाएं
  4. आपका सदैव स्वागत है.

    आपके द्वारे हम हो भी आये.
    चौखट पर दिया जला आये.

    कुछ बांचा.
    कुछ साझा किया.

    अब आना-जाना लगा रहेगा .

    जवाब देंहटाएं

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