बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

जीवन तो अपने विवेक से जीना है

भई, तुमसे किसने कहा था !
किसने कहा था कि किस्मत से उलझो ?
बल्कि समझाया था ..
वक्त की नज़ाकत समझो !
जो होता है होने दो !
होनी को कौन टाल पाया है ?
सब प्रभु की माया है !
कुछ भी ऊल-जलूल मत बको !
देखो अपनी हद में रहो ..
पर तुम्हें तो जीवन की
पोथी को बांचना है !
ज़िंदगी के हर इम्तिहान की
कॉपी को जांचना है !
भाग्य से लङ कर गढ़ जीतना है !
अपने जीवट का जौहर दिखाना है !
नट का नाच
सीखना और सिखाना है !
जमूरा नहीं.. उस्ताद बन कर
खेल दिखाना है !
खैर..देखो अब नतीजा क्या निकलता है !
तुम्हारा माद्दा पास या फ़ेल होता है !
कब तक टिकोगे बहाव के आगे ?
डूबते हैं जो बाज़ नहीं आते !

अच्छा जाओ.. जो मन में आये करो !
अभिमन्यु की तरह चक़व्यूह से लङो !
पराक़म करो !
जिसका जो होना है सो होना है !
पर तुम्हें भी जो करना है सो करना है !
जीवन की ये कैसी विडंबना है !

पर तुम्हारा ये कहना है -
विडंबनाओं को साथ लेकर जीना है.
विसंगतियों को स्वीकार करना है..
और फिर परास्त करना है.

तो ठीक है..
अब जैसा तुम कहो.

कोई चमत्कार हो ना हो, 
मन का माना हो ना हो,
जीवन तो अपने विवेक से जीना है.

जीवन तो अपने विवेक से जीना है.



करारनामा


करारनामा  
जब से ...

तुम्हारे नाम लिखी चिट्ठी
जब से डाक में
लौट आई है,
तब से मैंने तुम्हें
चिट्ठी लिखना
छोड़ दिया है.

अब मैंने
अपने नाम आई
हर चिट्ठी को
सहेजना,
बार-बार पढना
शुरू कर दिया है.


करारनामा २ 

अब ..

जब से तुमने
मेरे प्यार का इज़हार,
इश्तहार से भी बेकार
करार दिया है ;
तब से मैंने
तक़दीर से तकरार
करना छोड़ दिया है.
पर अब.. मैं प्यार
देने वालों को
बेबस लाचार,
चेष्टा अनाधिकार
करने वाला..
नहीं समझता.
अब मैं
ज़रा-सा भी
प्यार-दुलार
मिले तो
बेझिझक अपनाता हूँ.
उत्सव मनाता हूँ.
जिसका स्नेह मिले,
उसका आभार
मानता हूँ.
जो आत्मीयता से
अपना कहे,
उसे हृदय से लगाता हूँ.



करारनामा ३ 

करार

जानते हो क्यों ?
क्योंकि बहुत कुछ खो कर
मैंने पाना सीखा है.
अवहेलना सह कर
भावनाओं का
आदर करना सीखा है.
कोई समझ क्यों नहीं पाता . .
इस उलझन को सुलझा कर
अव्यक्त को समझ लेना सीखा है.

जो मुझे नहीं मिला
मैंने देना सीखा है.