रविवार, 17 मई 2015

करने का क्या ?



क्यों बिरादर ?
क्यों आंसू बहाता है ?
क्यों अकेलेपन से घबराता है ?

तुझे क्या लगा तू ही अकेला है ?
तेरे साथ ही किसी का 
ज्यादा दिन जमता नहीं ?
फिर तो तुझे कुछ पता ही नहीं !

देख, तेरे पास जास्ती पैसा नहीं !
तू जास्ती पढ़ा - लिखा नहीं !
तेरा नौकरी भी चकमक नहीं !
मतलब हर जगह से तेरा पत्ता साफ !
ज्यादा दिन कोई नहीं रहता तेरे साथ !
बस ये ही है न बात ?

अब मुझे देख जरा !
शकल तो अपनी बुरी नहीं !
पर कोई खास भी नहीं !
टॉप की पढ़ाई भी नहीं !
काम भी टिप - टॉप नहीं !
पर अगर बोलो कि कुछ भी नहीं !
तो ऐसा भी ठीक नहीं !

पर कुछ पता भी है कि नहीं !
अपना तो कभी सही नंबर ही 
                                लगता नहीं !
लाइफ में जब भी लगा ! 
रॉन्ग नंबर ही लगा !
पता नहीं क्या गलत हो गया !
तो बोलो नतीजा क्या ?
अपना भी लाइफ अकेलेपन का !

अब उसको देख !
चिकना अपना !
पोस्टर के हीरो माफिक शकल इसका !
फर्राटे से दौड़ता है धंधा इसका !
इसके पीछे दुनिया दीवानी !
पर पता है क्या इसकी परेशानी ?
एक लड़की भी इसको पसंद नहीं आती !
कोई इसको समझ नहीं पाती !
बोलो फिर नतीजा क्या ?
ये भी अकेला का अकेला !

अभी बोल करने का क्या ?
सब कुछ रहेगा - तो भी अकेला ।
नहीं रहेगा - तो भी अकेला ।
बता समझने का क्या ?
लाइफ में लोचा ही लोचा !
अभी बोल करने का क्या ?

देख अपने को एक बात समझा ।   
जो होने को है वो ही होता ।
फकत अपने को क्या लगता  . . 
अपने दिमाग पर ताला नहीं मारने का ।
दिल का रास्ता बंद नहीं करने का ।
समझो कभी कोई आया !
जिससे चांस है अपना जमने का  . . 
तो वो लौट के नहीं जाने का !

अगर कोई तुम्हारे वास्ते आया 
तो पहचान लेने का,
जाने नहीं देने का !

बस रेडी रहने का !
जब अपना टाइम आयेगा,
टाइमिंग सेट हो जायेगा !


      

अश्रु झरते दिन रात



जिस तरह पतझड़ में झरते पात,
नयनों से अश्रु झरते दिन रात ।  

दुविधा की इस घड़ी  में कोई नहीं साथ,
कोई नहीं साथ जो समझे मन की बात ।

मन के सहज भावों ने किया आत्मघात,
अंतर के कोलाहल का निष्ठाओं पर आघात ।    

भव्य प्रस्तर प्रतिमाओं के बीच,
कोमल फूलों की क्या बिसात ।  


मंगलवार, 12 मई 2015

आकस्मिक


ये बात उस परिचित की है
जो कल तक बेगाना था
और आज ज़बरदस्ती
दोस्त बन बैठा है ।
अचानक उस दिन उसने पुकारा
खूबसूरत कह के पुकारा
तो अचरज हुआ
कुछ कहते नहीं बना ।
फिर सोचा चलो
हाज़िरजवाबी का लेकर सहारा
मारा जाये नहले पे दहला
मैंने भी उसे नौजवान सजीला कह दिया ।
अब क्या था
बातों का पिटारा खुल गया ।
जैसे उसने दामन ही पकड़ लिया ।
उसने अपने बारे में बताया
वो भी बताया
जो लोग अक्सर कह पाते हैं
अपने करीबी दोस्त से ।
अब तक समझ नहीं आया
ऐसा उसने क्यों किया ?
एक टूटा हुआ रिश्ता
अंदरूनी ज़ख्म होता है
जो आदमी या तो वैद्य
या अपने अज़ीज़ को दिखाता है ।
मुझे तो न दुःख की दवा पता
न आज से पहले था कोई रिश्ता ।
फिर उसने अपना सवाल पूछा
जैसे उसे पहले से था पता
कि मन के किसी कोने में
जवाब है छुपा ।
ये मनाता हुआ
कि कोई पूछ ले सवाल
टटोले दिल का हाल  ।
वरना क्या ज़रूरी था ?
सवाल का जवाब देना ?
बल्कि तुमने ही किया था
शुक्रिया
पूछने का और सुनने का ।
खुद ही अपना चैन गवां दिया !
माना उसने कंकड़ फेंका
शांत जल को उथल पुथल कर दिया ।
पर तुमसे किसने कहा था
उसी जल में देखो अपना मुखड़ा ?
हर बात जानना चाहता है
हर ज़ख्म कुरेदना चाहता है
दुःख बाँटना चाहता है
कस कर गले लगाना चाहता है
और सब कुछ अभी
अभी कि अभी
जानना चाहता है ।
मेरा ये आकस्मिक दोस्त
आखिर क्या चाहता है ?

रविवार, 10 मई 2015

अभिनंदन

पस्त 
ध्वस्त 
क्लांत 
परास्त 
बस के इंतज़ार में 
सड़क के किनारे 
पेड़ के नीचे 
खड़ी थी, 
सोचती हुई ।  
दूर - दूर तक कोई अपना नहीं । 
किसी को परवाह नहीं । 
जीने की कोई चाह नहीं ।  
रास्ता तक पार करने की 
हिम्मत नहीं । 
पैरों में जान नहीं ।  
कैसे जीवन की 
नैया पार लगेगी ?
पता नहीं ।

आँखों में धुँधली - सी नमी थी ।  
और नब्ज़ डूब सी रही थी । 
फिर अनायास ही देखा  . . 
बहुत सारे 
सोनमोहर के फूल पीले 
मुझ पर ऊपर से झरे, 
दुपट्टे में अटक गए, 
हाथों को छूते हुए
आसपास पैरों के 
बिखर गये ।

अचरज हुआ ।
किसने मन का क्रंदन सुन लिया ?
हारे हुए सिपाही का 
अभिनंदन किया । 

और बहुत कुछ कह दिया ।

     
    

शनिवार, 9 मई 2015

हम दोस्त हैं


जाने कब से,
हम मिले नहीं ।
एक - दूसरे के बारे में,
हम कुछ जानते नहीं ।
फिर भी,
हम दोस्त हैं ।

आप भी हमारे हालात पहचानिये, 
हमारी मसरूफ़ियत को जानिये, 
देखिये, इस बात को समझिये  . . 
हम दोस्तों की सारी ख़बर रखते हैं ।

फ़ेसबुक की टाइमलाइन पर 
                    नज़र रखते हैं !
आप ख़ुद देख लीजिये !
दोस्तों की हर पोस्ट को 
              लाइक करते हैं !
हर फोटो को शेयर करते हैं,
ट्विटर पर फ़ॉलो  करते हैं !
इंस्टाग्राम पर दीदार करते हैं  . . 

पर अब, ये सब फ़िज़ूल की बातें हैं,
जो आप कहते हैं  . . 
क्या हम अपने दोस्त की 
लिखावट पहचानते हैं ?
क्या हम अपने दोस्त की 
दुखती रग चीन्हते हैं ?
इन सवालों का जवाब  . . 
                 "नहीं" है ।
इन जज़्बाती बातों के लिए वक़्त 
                            नहीं है ।
फिर भी,
हम दोस्त हैं ।

दोस्तों की लम्बी 
फ़ेहरिस्त है ।
आप चाहें तो हम 
गिनवा सकते हैं ।
मजाल है जो कभी 
उनकी बर्थडे पर 
मैसेज ना किया हो !
एनिवर्सरी पर 
विश न किया हो !
हाँ इतना तो वक़्त नहीं,
जो घर आना - जाना हो ।
कभी साथ में सैर पर निकला जाये ।
जब बिना पूछे ही 
मन की बातें 
ज़बान पर आ जायें ।
या कभी यूँ ही बरामदे में 
चुपचाप बैठा जाये,
समय की चहलकदमी को 
कौतुक से देखा जाये ।
कभी झकझोर के 
अपने अज़ीज़ को 
पूछा जाये,
यार बता !
आख़िर बात क्या है ?

हाँ ठीक है ।
वो बात ही कुछ और होती 
अगर कभी कभी 
हम गले मिलते ।
हाथ मिलाते 
तो जान पाते  . . 
दोस्त की हथेली 
ठंडी क्यों है,
पकड़ ढ़ीली क्यों है  . . 
या तसल्ली होती -
गर्मजोशी से हाथ मिला के 
दिल के बंद पोर खुल जाते !

पर ऐसा है नहीं ।
अंदरुनी दूरियाँ 
अब कोई 
नापता नहीं  . . 

ऐसा है नहीं  . . 

फिर भी,
हम दोस्त हैं ।

                                            


सोमवार, 4 मई 2015

बहुत दिनों बाद



बचपन बहुत पीछे छूट गया ।

बहुत बरस पहले कहीं ठिठका,
बस वहीँ अटक कर रह गया ।
जैसे खाते - खाते लगे ठसका  . . 
ऐसे कभी - कभी याद है आता,
और आँखें नम कर जाता ।

उस दिन कुछ ऐसा ही हुआ ।

बहुत दिनों में ननिहाल जाना हुआ ।
प्रणाम करते ही नानाजी ने कहा  . . 
अब महीना भर जाने नहीं दउंगा ।

बहुत अरसे बाद उनका ये कहना,
बालों में आती सफ़ेदी को अनदेखा कर गया ।
बचपन के किस्सों वाला पन्ना पलट गया  . . 
जिसमें था बचपन की कारस्तानियों का लेखा - जोखा  . . 
और नानाजी का बात - बात पर रोकना - टोकना ।

अब ना कोई जाने से रोकता ।
ना ही गलतियों पर टोकता ।

इसलिए जब नानाजी ने कहा  . . 
अब महीना भर जाने नहीं दउंगा  . . 

. .  तो रोना भी आया ।
और बहुत अच्छा भी लगा ।