सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

उनकी भी आज दिवाली है







जहाँ सितारे ही दीये हैं,
मीलों बर्फीले सन्नाटे हैं.
आतिशबाज़ी गोलीबारी है,
सावधानी ही पूजा है.
उस सुनसान बियाबान में,  
घर से जो मीलों दूर हैं.
जो सीमा की पहरेदारी में,
अलख जगाये बैठे हैं.
                        उनकी भी आज दिवाली है .


जहाँ पानी आंसू की बूँद है.
साफ़ गलियां एक अय्याशी हैं.
जहाँ शोर ही आतिशबाज़ी है,
दो जून रोटी पकवान है.
उस झोंपड़पट्टी की बस्ती में,
हर पल जीने की जंग है.
जिनका कल रात लगी आग में,
जल कर हुआ सब कुछ ख़ाक है.
                           उनकी भी आज दिवाली है.

इन सबके नाम का एक दिया,
अब मन में हमें जलाना है.
उनसे जो बन पड़ा उन्होंने किया,
अब हमें कुछ कर के दिखाना है.

                        उनकी भी आज दिवाली है.
                        उनको भी दीया जलाना है.                




रविवार, 26 अक्तूबर 2014

दीये की लौ





आले में रखा
दीया,
कब तक
और कितनी दूर तक
दूर करता रहेगा
अँधेरा ?



एक दिन तो
मुझे चल देना होगा,
हथेली पर लेकर दीया ..

लौ का काजल
आँखों में आंज कर,
नज़र चमका कर,                   
चीर कर रख देना होगा
अँधेरा .


एक दिन तो              
मुझे अपना मन
साधना होगा,
मानो
दीये की लौ .