tag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post844503978062930422..comments2024-03-23T22:39:59.865+05:30Comments on नमस्ते namaste : सोनमोहरनूपुरं noopuramhttp://www.blogger.com/profile/18200891774467163134noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-725989517651635361.post-70170159958944258282016-07-28T21:34:52.451+05:302016-07-28T21:34:52.451+05:30अच्छा जी। सोनमोहर को बड़ा प्रेम आ रहा है इस थके मां...अच्छा जी। सोनमोहर को बड़ा प्रेम आ रहा है इस थके मांदे पर। अरे बिछा दो न सारे फूल। ये सारे उठा ले जायेगी और घर जाकर उसके पकौड़े तलेगी।<br /><br />वैसे कविता अच्छी है। प्रकृति से जुड़ी तेरी रचनाएँ अच्छी ही होती हैं। जो दिल में है, वह सीधे सादे शब्दों में कह दिया गया है; इस लिए इस पर ज़्यादा कुछ तो है नहीं लिखने को। थके – थके से’ शब्दों का दोहराना तेरा अपना अंदाज़ है जो तूने हमेशा बड़ी ख़ूबी से प्रयोग किया है। मगर अब तो ज़्यादातर तू अपना यह ख़ास अंदाज़ भूली ही रहती है। एक पेड़ का यह प्रयास कि वह एक मानव के जीवन को सरल बनाना चाहता है, अच्छा है। बहुत अच्छा है। आज जब एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के जीवन को केवल कठिन बनाने में लगा हुआ है, प्रकृति को आगे आ कर प्रयास करना पड़ रहा है, यह विचार सराहनीय है।<br /><br />बिछा दो भाई, सोनमोहर जी। फूल बिछा दो। बनता है जी॥Shams Noorur Rehman Farooqihttps://www.blogger.com/profile/07939925275061955927noreply@blogger.com