गुरुवार, 21 जुलाई 2016

वंदे मातरम्

3 टिप्‍पणियां:

  1. लो। वन्दे मातरम् लिखने का काम मिला था। उसमें सारे जहाँ से अच्छा लिख दिया। कोई नंबर नहीं मिलेंगे। हाँ। वैसे राइटिंग के दो नंबर मिल सकते थे। मगर मना किया है न, इस पेन से मत लिखा करो। क़लम और स्याही से लिखना चाहिये।
    हिंदोस्ताँ तो अब भी अच्छा ही है। मगर हमने देखने की नज़र खो दी है। सुजलाम्, सुफलाम् और मलयज शीतलाम् में क्या नहीं है। है तो। अब भी वही गंगा है जिसके किनारे हमारे दिल के कारवां उठरते हैं और हमारा पास्बाँ अब भी उसी शान से खड़ा है।
    हिंदुस्तान बहुत ख़ूबसूरत है बिटिया। हमारी नज़रों में ख़राबी आ गई है। नज़रें ठीक करो। दिलों को ठीक करो। चलो, दो नंबर दे दिये। ख़ुश रहो।

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  2. ये काम नहीं था बाबा । ये जवाब था उन लोगों को जो दिन रात सिर्फ़ इस देश इस समाज की ख़ामियों को लेकर शिकायत करते रहते हैं । दूसरों पर दोष मढ़ते रहते हैं । शिकायत किससे करते हैं और क्यों ? जो करना है हमें ही करना है ।

    और जो करते हैं, शिकायत नहीं करते, वही तो असल में कविता रचते हैं । उन्हें तो पूरे नंबर मिलेंगे ना ?

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  3. अच्छा जी। कविता रचने वाले इतने महान होते हैं, यह तो पता ही न था। नंबर तो पूरे ही दिये हैं जी। सवाल ही दो नंबर का था।

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