आज दफ़्तर को जाते हुए,
एक अजब किस्सा हुआ ।
मोटरों की चिल्ल-पों,
भीड़ भरे रास्तों
के ठीक बीचों-बीच,
बस स्टॉप के रास्ते पर
चलते-चलते अचानक देखा . .
एक गिलहरी,
अनायास ही ,
मेरा रास्ता
पार कर गयी ।
कंक्रीट का जंगल
देखता रह गया ।
कुछ पल के लिए
वहाँ कोई ना था ,
ना रास्ता ,
ना बाकी दुनिया से वास्ता ।
एक कोमल पल ठहर गया ।
एक सुखद अनुभव हुआ ।
और बाँटने का मन हुआ ।