रविवार, 1 सितंबर 2013

रेशम के धागे चार



रेशम के कच्चे धागे चार। 
इन्ही चार धागों में सिमटा 
भाई - बहन का प्यार। 
भाई - बहन का प्यार। 
लो आया राखी का त्यौहार ! 

भाई के संग 
खेल - खेल कर
हुई बड़ी।  
भाई के संग 
झगड़ - झगड़ कर 
हुई खड़ी। 
भैया की ये बहन बड़ी अलबेली !
अपने भैया की घनी लाडली बावली !

रेशम के कच्चे धागे चार। 
इन्ही चार धागों में सिमटा 
भाई - बहन का प्यार। 
भाई - बहन का प्यार। 
लो आया राखी का त्यौहार ! 

बहन की आँखों का तारा।  
भाई , बहन को बहुत ही प्यारा।  
साथ - साथ में ऊधम करना ,
कभी रुलाना, कभी मनाना। 
बहन का भाई बड़ा अलबेला। 
सुख - दुःख का साथी, बन्धु गर्वीला !

रेशम के कच्चे धागे चार। 
इन्ही चार धागों में सिमटा 
भाई - बहन का प्यार। 
भाई - बहन का प्यार। 
लो आया राखी का त्यौहार !

दोनों ने मिल कर की 
बदमाशियाँ !
दोनों ने आपस में बाँटी 
कहानियाँ । 
इन दोनों की साझी 
छुटपन की नादानियाँ। 
इन दोनों ने समझीं ,
रिश्तों की ज़िम्मेदारियाँ । 

रेशम के कच्चे धागे चार। 
इन्ही चार धागों में सिमटा 
भाई - बहन का प्यार। 
भाई - बहन का प्यार। 
लो आया राखी का त्यौहार ! 

न मांगे कभी कोई अधिकार ,
सहज ऐसा भाई - बहन का प्यार।  
ये रिश्ता मानो कोई उपहार ,
संजोये मन जिसे बार - बार।  

रेशम के कच्चे धागे चार। 
इन्ही चार धागों में सिमटा 
भाई - बहन का प्यार। 
भाई - बहन का प्यार। 
लो आया राखी का त्यौहार !