शुक्रवार, 17 मई 2013

टीन के गमले



लोकल ट्रेन की 

पटरियों के किनारे 
नाले पर बसी बस्ती ..
बस्ती के घर 
बेपर्दा हैं .
झोंपड़पट्टी के घर 
दड़बे जैसे ,
निहायत ही ज़रूरती 
सामान से भरे .
फ़र्श साफ़-सुथरे ,
आले में 
बर्तन चमकते हुए ,
और टीन के डब्बों में 
पौधे खिले हुए ..
अपनी अस्मिता का 
दावा ठोकते हुए ..
एक चुनौती हैं -
मुफ़लिसी से पैदा हुई 
मायूसी के लिए .
सबूत हैं -  
जीवन की उर्वरता का .
प्रमाण हैं -
इस बात का कि  
जीने और खिलने की निष्ठा 
शुद्ध आबोहवा की भी 
मोहताज नहीं .
जड़ पकड़ने भर को 
बस मुट्ठी भर मिट्टी चाहिए .
टीन के डिब्बों में 
रत्न से जड़े हैं ,
छोटे - छोटे ये पौधे 
जिद्दी बड़े हैं .
डट कर 
जी रहे हैं .