शनिवार, 9 मार्च 2013

तुम पर है



बात है ही कुछ ऐसी ,
क्या कीजिये !

यदि तुम्हारी यादें,
तुम्हारी बातें,
मन में तहा कर रखना,
सोचना तुम्हारे बारे में 
मानो माँगना दुआ,
तुम्हारे लिए मेरा 
ऐसा होना 
अगर .. होता है प्यार,
तो मुझे है स्वीकार।
और मुझे तुमसे 
प्यार करने से,
कोई नहीं रोक सकता .

तुम भी नहीं .
मैं भी नहीं .

नदी को बहने से 
कौन रोक पाया है ?
तुम अपनी नौका 
नदी में उतारो, ना उतारो,
वह तुम पर है. 

फूल को खिलने से 
कौन रोक पाया है ? 
फूल चुन कर मंदिर में चढाओ, ना चढाओ,
यह तुम पर है .

दुविधा क्या है ?
तुम्हें तो पता है .
नदी तो अनवरत 
तटस्थ बहती रहती है,
दो तटों के बीच 
संयम से बंधी है .
बाढ़ आना 
एक विपदा है,
उसका अभिप्राय नहीं .

फूल तो अपनी शाख पर 
खिलता है सहज ही .
खुशबू उसका स्वभाव है,
नियति नहीं .
बात समझे या नहीं ?

नदी का बहना,
फूल का खिलना,
अंतरतम के भावों की 
अभिव्यक्ति है .
भावों की गंगा बहने दो .
भावों के कमल खिलने दो .
इस अनुभूति को आत्मसात तुम करो, न करो,
यह तुम पर है .


    

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