मंगलवार, 4 सितंबर 2012

कड़े दिनों के दिवास्वप्न



कड़े दिन .. 
कट जाते हैं 
दिवास्वप्न के सहारे।
ये जो दिवास्वप्न हैं,
अभिलाषाओं और आशाओं का 
गणित हैं।

और ये मन क्या 
किसी मुनीमजी से कम है ?
हिसाब बैठता है 
संभावनाओं का।
सुख जोड़ता है।
दुःख घटाता है।
इच्छाओं का गुना-भाग कर 
भावनाओं का सामंजस्य बिठाता है।

ये जो दिवास्वप्न हैं ,
जीवन से लगी आस का 
चलचित्र हैं।
छोटी-बड़ी उम्मीदों का 
यायावरी क्रम हैं।

ये जो दिवास्वप्न हैं ,
ऊन के फंदे हैं 
जो माँ स्वेटर बुनते बखत 
सलाई पर डालती है।
रेशम के धागे हैं 
जिनसे बिटिया 
ओढ़नी पर 
बूटियाँ काढती है।
कल्पना का रथ हैं 
जिस पर सवार 
मेरे बेटे के भविष्य का 
चिंतन है।

उम्मीद का परचम हैं 
ये दिवास्वप्न।
इनके सहारे 
कट जाते हैं 
कड़े दिन।